तहसीलदार चरखारी को ₹25000 का जुर्माना

सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना ना देना जन सूचना अधिकारी/तहसीलदार को पड़ा भारी

चरखारी (महोबा)। फरियादियों द्वारा बार-बार की जा रही शिकायतों के निस्तारण में भी गंभीरता ना दिखाना जहां अधिकारियों के लिए शगल बन गया है। वहीं सूचना के अधिकार के तहत सूचना प्राप्त करने का अधिकार आम फरियादियों के लिए अपनी शिकायतों को निस्तारित करवाने में हथियार साबित हो रहा है।

 इसी की एक मिसाल मोहल्ला सौहरयाव निवासी प्रमोद तिवारी द्वारा प्रस्तुत की गई, प्रमोद तिवारी द्वारा अपनी शिकायत के निस्तारण मैं की गई कार्रवाई की सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत दो बिंदुओं पर जानकारी चाही गई थी। जिसमें प्रथम सन 2018/19 में हुई अतिवृष्टि में शासन द्वारा मौजा सोहरयांव/ इटवा के किसानों को दिए गए मुआवजे के लिए सूचीबद्ध किए गए किसानों के नामों की सूची किसानों के वल्दियत के साथ की सूची की प्रमाणित प्रति मांगी गई थी। एवं दूसरी सूचना के तहत मौजा सुहरयाव/ इटवा के चकरोड को जिसे दबंगों ने बंद कर दिया था के संबंध पर मंगल दिवस/ तहसील दिवस में दी गई उनकी शिकायत पर की गई कार्रवाई की प्रमाणित प्रति चाही गई थी। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई अपने शिकायती पत्र पर की गई कार्रवाई की प्रमाणित प्रति, जब तहसील चरखारी द्वारा वादी को मुहैया नहीं कराई गई। तब वादी प्रमोद तिवारी द्वारा राज्य सूचना आयुक्त लखनऊ मैं अपना वाद प्रस्तुत किया गया। जिस पर भी तहसील प्रशासन चरखारी द्वारा राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष अपना कोई पक्ष नहीं रखा गया। जिसके परिणाम स्वरूप राज्य सूचना आयुक्त द्वारा जन सूचना अधिकारी / तहसीलदार चरखारी को दंडित करते हुए सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना के दिवस से ₹250 प्रतिदिन के हिसाब से ₹25000 / 25000 हजार का जुर्माना लगाकर दंडित किया गया है, सूचना आयुक्त द्वारा जन सूचना अधिकारी / तहसीलदार चरखारी को दंडित करना फरियादियों में अपनी शिकायतों के निस्तारण के लिए एवं अधिकारियों की अकर्मण्यता अधिकारियों को भी भारी पड़ सकती है का स्पष्ट संदेश देती हुई प्रतीत हो रही है और सूचना के अधिकार अधिनियम से अपनी शिकायतों पर की गई कार्रवाई की जानकारी हासिल करने के प्रति नई आशा को जगा रहा है।

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